*हुजूर के रोज़ा मुबारक पर मौजूद 3 नूरानी सुराख़*
मोहतरम जनाब मोहम्मद अब्दुल मजीद सिद्दीकी एडवोकेट लाहौर सफह 381 पर लिखते हैं: आरामगाह (कब्र ए अतहर) तक पहुँचने के लिए तीन सुराख़ हैं। पहला सुराख़ हुजरा मुबारक की छत में चेहरा ए अनवर ﷺ के ऐन मुकाबिल है। इस सुराख़ के बनाने की वजह यह हुई कि विसाल ए नबी ﷺ के बाद एक बार मदीना मुनव्वरा में बारिश न होने से लोग परेशान हो गए तो उन्होंने अमीर अल-मोमिनीन हज़रत आयशा रज़ी अल्लाहु तआला अन्हा से जो उस वक्त हयात थीं अर्ज़ किया कि आप दुआ फरमाएं। तो आपने उन्हें मशवरा दिया कि हुजूर अक़रम ﷺ के ऐन रू ए अनवर के मुकाबिल इस हुजरा की छत में एक सुराख़ कर दो। खुदा की कुदरत यह सुराख़ बनाने की देर थी कि बहुत ज़्यादा बारिश हुई और लोग निहाल हो गए और फिर उन्होंने चाहा कि अब सुराख़ बंद कर दिया जाए लेकिन उम्मुल मोमिनीन रज़ी अल्लाहु तआला अन्हा ने मना फरमाया चूँकि उस वक्त से यह सुराख़ अब तक मौजूद है।
दूसरा सुराख़ उसी सिम्त और उसके ऐन मुकाबिल मुख़म्स अमारत (यानी हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह तआला की बनवाई हुई अमारत) की छत में है।
तीसरा सुराख़ गुम्बद ए ख़ज़रा के किल्स की जड़ में उसके मुकाबिल है। तारीख से पता चलता है कि आज तक सिर्फ़ तीन ख़ुशनसीब हज़रात इन सुराख़ों के ज़रिए अंदर गए हैं। दुनिया भर में किसी दूसरे पैगंबर के मकान और क़ब्र मुबारक की हिफाज़त क़ुदरत की जानिब से ऐसी ना हुई। काश दुनिया वालों को हज़रत महबूबे ख़ुदा का मुख़्तसर सादा और कच्चा हुजरा मुबारक जो आज भी अपनी असली हालत में मौजूद है दिखाया जा सकता।
आप ने ड्राइंग रूम में लगे हुए फोटो देखे होंगे कि गुम्बद ए ख़ज़रा के नीचे रंगीन व नफ़ीस चादरों में मलबूस तीन निहायत खूबसूरत क़ब्रें हैं। यह आर्टिस्ट का महज़ तख़य्युल और उसके दिमाग की पैदा वार है जिसका हक़ीक़त से कोई ताल्लुक़ नहीं।
*आप ﷺ की क़ब्र के अताराफ़ के अहाता की कफ़ालत*
कुछ तारीख़ी शवाहिद से पता चलता है कि सरकार ए दो आलम ﷺ, हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु, और हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ी अल्लाहु तआला अन्हु की क़ब्रें सत्तर-अस्सी बरस तक ज़ियारत आम के लिए खुली रहीं। हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह तआला ने 88 हिजरी में मुक़द्दस क़ब्रों के गिर्द एक पंच गोशा अहाता तामीर किया। कहा जाता है कि इसी पांच तरफ़ीन वाली अमारत पर ग़िलाफ़ चढ़ा हुआ है।
557 हिजरी में सरताज ए अंबिया ﷺ के जिस्म ए अतहर को दो यहूदियों ने नक़ब लगाकर चोरी करने की कोशिश की। इस वाक़े के बाद नूरुद्दीन ज़ंगी ने रोज़ा ए अक़दस के गिर्द चारों तरफ़ पानी की सतह से सीसा पिघला कर दीवारें खड़ी कर दीं जिससे एक और हिसार खड़ा हो गया। अब ग़िलाफ़ के अंदर का नक़्शा अल्लाह की ज़ात के सिवा किसी को मालूम नहीं। हमारे मुल्क के जिन सरबराहान के लिए रोज़ा ए अक़दस खोला जाता है वह भी मुक़द्दस क़ब्रों की ज़ियारत नहीं कर पाते बल्कि ग़िलाफ़ के गिर्द खाली जगह मक़सूरा तक महदूद रहते हैं जो बाहर से बासानी नज़र आता है।
ज़ुल्मत के अंधेरों को दूर करने वाले, दिलों को रोशन करने वाले, ज़ेहनों को मुनव्वर करने वाले, फिक्र व नज़र को जला बख़्शने वाले अज़ीम पैग़ंबर का रोज़ा अंदर से तारीक रखा गया है जबकि पूरी मस्जिद ए नबवी बअक़ा ए नूर है। इसकी वजह समझ से बाहर है। पुराने सफ़र नामों से पता चलता है कि तुर्कों के ज़माने में रोज़ा ए नबी ﷺ में रात भर रौशनी का इंतज़ाम रहता था। बड़ी-बड़ी काफ़ूरी बत्तियाँ जलायी जाती थीं।
*मक़ाम ताइफ़ (जहां आप ﷺ के पांव ख़ून से रंगीन हो गए):*